इन दो आश्रमों में पहुंचकर चित्रकूट से विदा हुए थे वनवासी राम !
Chitrakoot में वनवास काल के दौरान चित्रकूट से जाते समय भगवान राम का सरभंगा आश्रम और सुतीक्ष्ण आश्रम जाना हुआ था। दोनों ही स्थान हजारों वर्ष बाद भी आज वैसे ही शांति एवं राम-मय भक्ति को खुद में समेटे है। ये स्थान चित्रकूट सीमा से सटे मझगवां (एमपी) इलाके में स्थित है। लेकिन आज तक पर्यटन की मुख्य धारा से इस स्थान को नही जोड़ा गया है।

100 बार गंगा तो एक बार सरभंगा
वनवास काल के दौरान चित्रकूट से जाते समय भगवान राम का सरभंगा आश्रम और सुतीक्ष्ण आश्रम जाना हुआ था। दोनों ही स्थान हजारों वर्ष बाद भी आज वैसे ही शांति एवं राम-मय भक्ति को खुद में समेटे है। ये स्थान चित्रकूट सीमा से सटे मझगवां (एमपी) इलाके में स्थित है लेकिन आज तक पर्यटन की मुख्य धारा से नही जुड़ा ये स्थान। अपने टीम के साथियों संग दोनों ही स्थानों का दर्शन कर वनगमन मार्ग हेतु सभी स्थितियो का अवलोकन किया । जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी. दूर स्थित 4 लाख वर्ष पुराना सरभंगा आश्रम सतयुग से लेकर आज तक आस्था का केन्द्र बना हुआ है।
मंदिर के संतों की मानें तो भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के दौरान सरभंग मुनि को 12वें वर्ष में अहसास हो गया था कि भगवान राम एक दिन हमारे आश्रम आएंगे और उद्धार करेंगे सुतीक्ष्ण आश्रम जिला चित्रकूट की सीमा से सटे इलाहाबाद-मानिकपुर रेल मार्ग पर जैतवारा स्टेशन से 20 मील और शरभंग आश्रम से सीधे जाने पर 10 मील पर स्थित है।
वाल्मीकि रामायण में चित्रकूट से आगे जाने पर अनेक मुनियों के आश्रम से होते हुए राम-लक्ष्मण-सीता के ऋषि सुतीक्षण के आश्रम में पहुंचने का उल्लेख है. यहां वे वनवास काल के दसवें वर्ष के व्यतीत होने पर पहुंचे थे तुलसीकृत रामायण में इस बात का जिक्र किया गया है कि भगवान अपने वनवास के दौरान चित्रकूट में 12 वर्ष बिताया।
फिर महाराज दशरथ का देहावसान हो जाता है। इसके बाद भरत जी राम को बुलाने वनवास की ओर कूच करते है। जहां चित्रकूट में भरत मिलाप होता है। इसके बाद राम चित्रकूट से प्रस्थान करते है। और अमरावती आश्रम के रास्ते सरभंग मुनि आश्रम में सरभंग जी से मिलने के बाद एक दिन यही रुकतें है। ऐसा मंदिर के संत-महात्मा बताते है।
- अनुज हनुमत की कलम से
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