सीएम योगी से आस , कब होगा बहिलपुरवा का विकास ?
आजादी के पचहत्तर बरस बाद भी विकास से अछूता 'बहिलपुरवा', डकैतों के खात्मे के बाद भी नही हो रहा विकास
चित्रकूट। आजादी के पचहत्तर बरस बीत जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश में एक ऐसा क्षेत्र है जहां मूलभूत सुविधाओं की एक भी क़िस्त अब तक नहीं पहुंची । विगत दिनों सीएम योगी आदित्यनाथ चित्रकूट के दौरे पर आए थे और खास बात ये है कि वह इसी बहिलपुरवा क्षेत्र में आये थे। मौका था वृहद वृक्षारोपण के कार्यक्रम की शुरुआत का ,लेकिन उनके आने के बाद भी इस क्षेत्र के विकास की बात नही हुई । हर चुनाव में नेता जी क्षेत्र के भृमण में आते हैं लेकिन सिर्फ वोट के लिए । यहां सरकारी सिस्टम भी पहुंचते पहुंचते दम तोड़ देता है । जी हां धर्मनगरी चित्रकूट का बहिलपुरवा क्षेत्र जहां आज भी प्राथमिक सुविधाओ का टोटा है । ग्रामीणों का कहना है कि बीते 75 बरस से लेकर इधर के बरस भी बीतने को है लेकिन अब तक हमरे कैति कौनो ध्यान नही दिहिश । पंजा से लैके हाथी और साइकिल से लैके कमल तक का वोट देहेन लेकिन कुछ न भा
ये पूरा क्षेत्र पठारी भाग में आता है जिस कारण इसे पाठा क्षेत्र कहतें हैं। डकैतो के आतंक का द्वार कहे जाने वाले बहिलपुरवा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली आधा दर्जन ग्राम पंचायतों के हजारों लाखों ग्रामीणो का जीवन बद से बदतर है । कुछ ग्राम पंचायतें जहां आदिवासी कोल और मवासी जातियों का संख्या ज्यादा है वहां के हालात तो इतने खराब है कि आप अन्दाजा भी नही लगा सकते कि बीते 75 बरस में विकास के नाम पर यहां हुआ क्या है ! अंत्योदय की बात करने वाली मौजूदा सरकार ने इतने दशकों बाद विकास की पहली किस्त के रूप में इन क्षेत्रों में बिजली तो पहुंचा दी है लेकिन अभी भी सड़क , स्कूल ,स्वच्छ पानी , अस्पताल और रोजगार की यहां के लोगो को दरकार है । करका पड़रिया का पुराना बहिलपुरवा गांव, मड़ैयन का सेहरिन गांव और रुकमा खुर्द , सेमरदहा पंचायत के कई मजरों में मूलभूत सुविधाओं का भयंकर टोटा है ।
वोटों के लिए मौजूदा राजनीति दलित वर्गों के इर्द गिर्द जितनी शिद्दत से घूम रही है उतनी ही शिद्दत से अगर इन तमाम गांवो में विकास हुआ होता तो आज हालात कुछ और होते । इन कोल आदिवासी गांवो में रहने वाले लोग जंगलो से लकड़ी काटकर और फेनी पत्तियों को बेचकर प्रतिदिन सिर्फ 100 से 150 रुपये ही कमा पाते हैं । पहले डकैतो ने विकास को रोका और आज लापरवाह अधिकारी एवं असंवेदनशील नेताओ के गठजोड़ के कारण इस क्षेत्र में विकास नहीं हो पा रहा है।
यू तो मौजूदा समय मे चारो तरफ विकास ही विकास नजर आ रहा है चाहे नेताओ के बोल हो या अधिकारियों के कागजी ढोल । लेकिन चित्रकूट के पाठा क्षेत्र के हालात आज भी जस के तस हैं । बहिलपुरवा क्षेत्र में दर्जनों ऐसे मजरे हैं जहां की स्थिति गम्भीर है । करकापड़रिया ग्राम पंचायत के पुराना बहिलपुरवा और करका मजरे , सेमरदहा के टेकारी और माराचंद्रा के छोबहरा मजरों में मूलभूत सुविधाएं आज तक नही पहुंची । पुराना बहिलपुरवा में विकास की पहली किस्त कुछ ही दिनों पहले पहुंची है लेकिन अन्य सुविधाएं अभी तक नही । इस मजरे में कई पुरवा हैं जहां मवासी और यादव जाति के लोग रहते हैं ।
सड़क ,पानी , स्कूल और आस पास अस्पताल न होने के कारण यहां के लोगो को खासा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है । पुराना बहिलपुरवा में कई पुरवो को मिलाकर 100-150 परिवार है जहां ग्रामीणों की कुल जनसंख्या हजारो में है । इन गांवों में सड़क का मसला वन विभाग के कारण भी कई दशकों से फंसा है जिसके लिए अधिकारियो और नेताओं ने कभी प्रयास किया ही नही । इन तमाम कारणों के बीच यहां की सबसे बड़ी समस्या डकैतो की भी है । 'डकैत' शब्द का जिक्र आते ही लोगो के मन में स्वतः ही खौफ और आतंक की भयावह तस्वीर उभरने लगती है । 'चंबल घाटी' और 'पाठा के बीहड' डकैतों का एक लंबा इतिहास खुद में समेटे हुए हैं । इन स्थानों में हमेशा से डकैतों का खौफ और उनका आतंक बदस्तूर जारी रहा है लेकिन फिलहाल डकैतो के खात्मे से जनता को कुछ राहत मिली है । इन डकैतो के खिलाफ पुलिस की कार्यवाही जितनी चर्चा में रही उतना ही सन्देह के घेरे में भी ।
दरअसल , जब हम बुन्देलखण्ड में डकैतो के इतिहास के विषय में बात करते हैं तो चित्रकूट जिले का नाम सर्वप्रथम सामने आता है जहाँ पाठा का बीहड़ डकैतो के आतंक का गढ़ रहा है । सच तो यह है कि विन्ध्य पर्वत-श्रंखलाओं से सटा बुन्देलखण्ड का प्राय: भू-भाग सफेदपोश नेताओं और सामंतशाहों की भीषण मोर्चाबन्दी के पीछे आज भी डकैतों और अन्य असामाजिक तत्वों के लिए अभयारण्य बना हुआ है।
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