ब्रिटेन में सत्ता परिवर्तन का भारत पर प्रभाव
खेल की ज़ुबान में कहें तो अगर कोई टीम मैच से पहले ही हार मान लेती है, तो इससे समर्थकों का हौसला पूरी तरह टूट जाता है। चार जुलाई को हुए आम चुनाव में ज़बर्दस्त शिकस्त खाने वाली ब्रिटेन की कंज़र्वेटिव पार्टी के करोड़ों समर्थकों के ऊपर ये बात बख़ूबी लागू होती है। ब्रिटेन में 14 बरस बाद लेबर पार्टी की सरकार बन रही है, ऐसे में भारत के साथ उसके रिश्ते अहम माने जा रहे हैं। जर्मी कोर्बिन के नेतृत्व में लेबर पार्टी ने 2019 में अपने सालाना जलसे में एक प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव में घोषणा की गई थी कि कश्मीर में मानवीय संकट पैदा हो गया है। प्रस्ताव में इस बात को भी बहुत ज़ोर दिया गया था कि कश्मीर को आत्मनिर्णय का अधिकार दिया जाना चाहिए। भारत ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था। तब लेबर पार्टी के नेता किएर स्टार्मर ने सफ़ाई दी थी कि कश्मीर, भारत और पाकिस्तान का आपसी मसला है। हालांकि तब तक बात बिगड़ चुकी थी। किएर स्टार्मर ने वादा किया है कि वो भारत के साथ रिश्ते सुधारेंगे। स्टार्मर के राज में भारत और ब्रिटेन के संबंध ख़ूब फलेंगे फूलेंगे। पिछली संसद में लेबर पार्टी के छह सांसद भारतीय मूल के थे। इस बार ये तादाद दो गुना बढ़ जाएगी। स्टार्मर एक संतुलित और व्यवहारिक नेता हैं। वो सुनिश्चित करेंगे कि दोनों देशों के रिश्तों में सुधार हो।
लेकिन भारत और ब्रिटेन के रिश्तों का आगे का सफ़र फिसलन भरा हो सकता है। ऐसे कई मसले अभी दबे हुए हैं, जो लेबर पार्टी की सरकार के दौरान ब्रिटेन और भारत के रिश्तों में कड़वाहट की वजह बन सकते हैं। इसमें लेबर पार्टी का मूल्यों पर आधारित विदेश नीति पर चलने का झुकाव भी शामिल है। ऐसी नीति में मानव अधिकारों जैसे मसलों पर काफ़ी ज़ोर दिया जाता है। इसके अलावा उन्हें मतदाताओं के कई तबक़ों को ख़ुश करना होता है। ब्रिटेन में भारतीय मूल के लगभग 15 लाख लोग रहते हैं। वहीं पाकिस्तानी मूल के भी लगभग 12 लाख लोग वहां बसते हैं। इसके अलावा ऐसे संगठन भी ब्रिटेन में सक्रिय हैं, जो भारत की संप्रभुता को चुनौती देते हैं। इन बातों के अलावा विश्व के व्यापक राजनीतिक और भू-राजनीतिक बदलावों का भी भारत और ब्रिटेन के रिश्तों पर उल्टा असर हो सकता है।
अगर नई सरकार में डेविड लैमी को विदेश मंत्री बनाया जाता है, तो भारत और ब्रिटेन के संबंध काफ़ी बेहतर होंगे। डेविड लैमी को दक्षिणी एशियाई मामलों की अच्छी समझ है। लेकिन, हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत की मौजूदा सरकार एक गठबंधन सरकार है। इससे एक संतुलन बनता है, जो भारत और ब्रिटेन के रिश्तों को आगे ले जाने के लिए बहुत अहम हो जाता है। भारत और ब्रिटेन के संबंधों में उच्च स्तर की निरंतरता देखने को मिलेगी। स्टार्मर और उनकी पार्टी के कई नेताओं ने ऐसे बयान दिए हैं, जिनसे संकेत मिलता है कि वो भारत के साथ रिश्ते सुधारना चाहते हैं। अगर लेबर पार्टी की सरकार भारत के साथ रिश्ते सुधारने को अपने एजेंडे का हिस्सा बनाती है, तो किएर स्टार्मर के लिए भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तख़त करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी। संभावित विदेश मंत्री डेविड लैमी ने संकेत दिया है कि वो जल्दी से जल्दी मुक्त व्यापार समझौते को पूरा करना चाहते हैं।
भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर दस्तख़त की राह में एक बड़ा रोड़ा ब्रिटेन आकर बसने वाले भारतीय कामगारों को वर्क परमिट जारी करने का है। ब्रिटेन में रह रहे बहुत से वैध भारतीय प्रवासी आईटी सेक्टर में काम करने वाले पेशेवर हैं। वो वर्क परमिट पर ब्रिटेन में रह रहे हैं और ब्रिटेन के तकनीकी क्षेत्र में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। लेबर पार्टी पारंपरिक रूप से विचारधारा पर आधारित विदेश नीति पर चलती रही है। मानव अधिकारों के रिकॉर्ड लेकर लेबर पार्टी अक्सर भारत और दूसरे देशों की आलोचना करती रही है। अगर किएर स्टार्मर भारत के साथ अच्छे रिश्ते क़ायम करना चाहते हैं, तो फिर उनको भारत सरकार को ये यक़ीन दिलाना होगा कि वो ज़्यादा व्यवहारिक विदेश नीति पर चलेंगे।
आशीष कुमार मिश्रा
( राजनीतिक विश्लेषक और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के जानकर )
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